देश के आर्थिक विकास का “स्वदेश एकोनॉमिक मॉडल”

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“स्वदेश व्यापार मंडल” द्वारा विकसित किये गए बेहद लाभकारी “स्वदेश एकोनॉमिक मॉडल” का परिचय संक्षेप में (विस्तृत मॉडल जानने के लिए आप हमसे मॉडल की बुकलेट मंगा सकते हैं) –

विश्व के प्रत्येक देश का विकास या तरक्की जहां से शुरू होती है, वहां उसे प्रारंभिक रूप में दो प्रकार की पूंजी की आवश्यकता होती है। ये दोनों पूंजी कुदरत द्वारा प्रदत्त होती है।  पहली पूंजी है क्षेत्रफल और दूसरी पूंजी है जनसंख्या। पूरे विश्व में 193 देश हैं, जिसमे कुदरत ने हमें पहली पूंजी क्षेत्रफल के रूप में छठवे स्थान पर रखा है, यानी 187 देश ऐसे हैं जिन्हें ये पूंजी हमसे कम हासिल है, और दूसरी पूंजी जनसंख्या में दूसरे स्थान पर रखा है ,यानी 191 देश ऐसे हैं जहाँ मैन पावर (मानवशक्ति) हम से कम है।

कई विकसित देश भी ऐसे हैं जिन्हें कुदरत ने ये पूंजी हम से कम प्रदान की है।  भगवान ने देते समय दोनों पूंजी से हमें बहुत मालामाल कर दिया। भगवान सिर्फ इतना ही हमें नहीं दिए, उन्होंने हमें छः ऋतुएं भी दीं, अर्थात हमें धन-धान्य पैदा करने के सबसे ज्यादा अवसर मिले।  खनिज और ऊर्जा का ऐसा भण्डार दिया, मालामाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।

अब जरा सोचिये अगर हमने भगवान द्वारा दी गई इस समस्त पूंजी का सबसे बेहतर प्रयोग किया होता तो आर्थिक रूप से हम सर्वोपरि होते।  अब इस बात के पश्चाताप में व्यर्थ समय गवाने की जगह हम तुरन्त आगे बढ़ते हैं, भगवान द्वारा प्रदत्त इस समस्त पूंजी का बेस्ट इन्वेस्टमेन्ट करने में। आइए हम आपको एक छोटा सा आर्थिक मॉडल बताते हैं, जिस पर काम करके हम अपने देश में अतिशीघ्र समय में बड़ी आर्थिक समृद्धि पैदा कर सकते हैं। इस आर्थिक मॉडल की रुप – रेखा समझते हैं। यह मॉडल व्यवहारिक रूप में कैसे प्रयोग किया जा सकता है और इसके क्या परिणाम (रिजल्ट) आ सकते हैं, इसकी एक झलक यहां हम प्रस्तुत करते हैं।

इस मॉडल का प्रयोग करते समय हम सबसे पहले, पूरे देश में समृद्धि लाने के लिए एक साथ प्रयास करने की जगह पहले एक किसी विशेष एरिया अथवा किसी एक गाँव या किसी एक शहर को मॉडल के रूप में चुनते हैं। इसके बाद उस गाँव के समस्त महिला एवं पुरुषों का एक संगठित समूह/परिवार के रूप में संगठन तैयार करते हैं, उसके बाद गाँव के समस्त महिला, पुरुषों को एकत्र करके उन्हें पूरा मॉडल समझाते हैं। उन्हें इस बात को समझाते है कि वो कैसे अपने देश को समृद्धशाली बनाने की एक कड़ी बनने जा रहे हैं।  वो कैसे भारत वर्ष की सबसे छोटी इकाई अपने गाँव को राष्ट्र का सबसे समृद्धशाली गाँव बनाने जा रहे हैं।  इसके बाद उस गाँव में निम्न मुख्य बिन्दुओं पर तुरन्त काम शुरू करते हैं।

आर्थिक पक्ष

सर्वप्रथम गाँव में मध्यम स्तर के कुछ ऐसे उद्योग लगाने हैं, जिससे हर घर में एक व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार कार्य मिले, यदि उद्योगों की संख्या अधिक हो सके तो यह और भी अच्छा होगा, क्योंकि इस प्रकार प्रत्येक घर से एक से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। हम मान के चलते हैं इससे गाँव की कुछ श्रमशक्ति में लगभग 25 प्रतिशत लोगों को आर्थिक लाभ मिलेगा। अब इस रोजगार के प्राप्त होने से प्रत्येक घर में अतिरिक्त आय बढ़ेगी, इस बढ़ी हुई आय को प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता की पूर्ति अपनी समृद्धि के लिए खर्च करेगा। पुनः इस बढ़ी हुई आय को एक व्यक्ति जिन वस्तुओं की खरीद पर खर्च करेगा उन वस्तुओं की दुकाने उन महिला या पुरूषों को आर्थिक सहायता देकर खुलवाना जिन्हें रोजगार नहीं मिल पाया इसके अन्तर्गत गाँव के 25 प्रतिशत लोगों को नये शुरू किये गए व्यवसाय के कारण आर्थिक लाभ प्राप्त होगा। इसके बाद गाँव के मुख्य व्यवसाय कृषि को आधुनिक बनाते हैं।  इसके लिए गाँव में जितने लोग कृषि में लगे हैं उन्हें एक आधुनिक कृषि का पैकेज प्रदान करते हैं।  इस पैकेज में मुख्य रूप से निम्न चीजें शामिल होंगी-

  1. फसल बोने के पहले भूमि को अत्यधिक पैदावार देने के योग्य बनाने की तकनीकें एवं सहयोग प्रदान करना।
  2. ऐसे आधुनिक बीज प्रदान करना जिनकी उत्पादन क्षमता अत्यधिक हो एवं इसको बोने की आधुनिक प्रणाली प्रदान करना तथा उन बीजों को प्रदान करना जो बेहद कम समय में अत्यधिक गुणवत्तापूर्ण उपज प्रदान कर दें।
  3. बीज बोने से लेकर, उपज पैदा होने तक की अत्याधुनिक सिंचाई सुविधा, फसलों की पूरी देखभाल एवं अन्त में उत्पादित फसल का बेहतर संचयन करना।
  4. गाँव में कृषि कार्य में लगे किसानों को सीधे मुख्य बाजार से जोड़ना जिससे बिचौलिए एकदम न हो और किसानों को अपने फसल का अधिकतम मूल्य मिल सके इसके लिए उन्हें एक बेहतर बिजनेस मैनेजमेन्ट सिखाना जिससे वे अपने कृषि पदार्थ का बेहतर प्रजेन्टेशन कर सकें और अधिकतम मूल्य पा सकें।
  5. गांवों में ही कृषि पदार्थों के प्रोसेसिंग एवं पैकिंग की व्यवस्था करना।  ऐसा करने से इस कार्य से जुड़े लोगों को भी रोजगार प्राप्त होगा।
  6. उत्पादन करने के लिए कृषि पदार्थों का चयन इस प्रकार करना कि उसमें कामर्शियल फसल का भाग (पोर्शन) ज्यादा हो।
  7. सहकारी या सामूहिक खेती ज्यादा फायदेमंद होगी।

कृषि के अलावा उपरोक्त वर्णित दोनों प्रयासों से वो लोग (जो कृषि में अवश्य बेरोजगारी के शिकार थे) वो पहले ही रोजगार या व्यवसाय में व्यस्त हो चुके होंगे। अतः इसके बाद जो लोग कृषि में कार्य करेंगे वो एक रोजगार या व्यवसाय की भांति ही कार्य करेंगे और इन्हीं की भांति आय प्राप्त करेंगे।  इसमें 40  प्रतिशत लोग आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे। उपरोक्त तीनों प्रयासों से गाँव का आर्थिक ग्राफ बढ़ने लगेगा। गाँव के अन्दर एक आर्थिक परिवर्तन आएगा। गाँव में प्रतिव्यक्ति आय बढ़ेगी और आय बढ़ने से गाँव के लोगों की वस्तुओं को खरीदने की क्षमता (परचेज पावर) बढ़ेगी। इस समय गाँव के लोगों को अपनी इनकम को बेहद समझदारी से खर्च करना होगा। यह बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है।  इस समय गाँव के लोगों को अपनी यह इनकम निम्न तीन भागों में खर्च करने के लिए प्रेरित करना होगा।

  • पहला भाग (बचत )-:  

इस बढ़ी हुई आय के एक भाग से चिकित्सा या आकस्मिक खर्च या भविष्य निधि के लिए बचत करने की आदत डालते हैं।  लोगो द्वारा बचा के रखी गई निधि से ही वो अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर पा सकते हैं। एवं इस बचत के आधार पर ही बैंक या अन्य सरकारी वित्त्तीय संस्थायें अपने प्राविधान के अनुसार गाँव के लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार फाइनेंस कर सकती हैं।

  •  दूसरा भाग (इन्फ्रास्ट्रक्चर )

इस बढ़ी हुई आय का एक भाग अपनी आवश्यकता की पूर्ति के बाद मकान, बिजली, सड़के आदि पर खर्च करते हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की मांग, गाँव में नया व्यवसाय एवं रोजगार पैदा करेगी। आर्थिक विकास का यह द्वितीय प्रभाव (सेकेण्डरी ) है, जो प्रथम प्रभाव (प्राइमरी) के कारण पैदा हुआ है।  जिसके कारण गाँव के लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या को आर्थिक लाभ मिलेगा।

  • तीसरा भाग (शिक्षा)

इस बढ़ी हुइ आय का एक भाग शिक्षा पे खर्च करेंगे यह अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि गाँव के विकास न कर पाने का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा ही होता है।  शिक्षा की कमी के कारण गाँव के लोगों का मानसिक स्तर ज्यादा विकसित नहीं हो पाता अतः गाँव के महिला, पुरुष एवं बच्चे सभी को उनके मानसिक स्तर के अनुसार आधुनिक शिक्षा प्रदान करना जरुरी है। इस शिक्षा के कारण ही-

  1.  लोगों के अन्दर जागरुकता आएगी, विकास की भावना बढ़ेगी, प्रतियोगिता का भाव जगेगा और सही दिशा में आगे बढ़ने की समझ पैदा होगी।
  2. लोगों को देश में हो रहे हर आधुनिक परिवर्तन की जानकारी मिलेगी, साथ ही वो इस कड़ी में आगे बढ़ते हुए विश्व की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक दशाओं में हो रहे परिवर्तन को जान और समझ पाएंगे और उसमें भाग ले पाएंगे।
  3. गाँव का स्तर हर दृष्टिकोण से समृध्दि की ओर बढ़ जायेगा। यहां एक आर्थिक लाभ अलग से प्राप्त होगा कि इस शिक्षा में किसी भी स्तर पर जुड़ने वाले लोगों को व्यवसाय या रोजगार मिलेगा जिससे गाँव की जनसंख्या में लोगों को एक अनुमान के तहत 10 प्रतिशत अतिरिक्त आर्थिक लाभ प्राप्त होगा।
  • मॉडल के परिणाम (रिजल्ट)
  1. गाँव के लोग जो भूखे पेट या आधे पेट खाकर सोते थे, उन्हें न सिर्फ भूख से ही मुक्ति मिलेगी बल्कि उनके घर नए कपड़े आएंगे, नए बर्तन आएंगे, उनका जीवन ही बदलना शुरू हो जायेगा।
  2. गाँव  के अन्दर उत्पादन शुरू होगा, एक नया बाजार पैदा होगा, नई आर्थिक प्रक्रियाएं शुरू होंगी।
  3. गाँव  के लोगों के मानसिक स्तर, सामाजिक स्तर, आर्थिक स्तर में सुधार होगा।
  4. गाँव में नया इन्फ्रास्ट्रक्चर पैदा होगा और गाँव अचानक विकास की राह पे बहुत तेज गति से दौड़ जाएगा।
  5. रोजगार में वृद्धि गाँव में धन का अतिरेक पैदा करेगी, यह अतिरेक प्रतिव्यक्ति आय बढ़ायेगा जिससे अतिरिक्त मांग पैदा होगी और यह मांग पुनः उत्पादन में वृद्धि करेगा।

स्वदेश व्यापार मण्डल

उत्पादन की यह वृद्धि नए रोजगार को जन्म देगी और ये नये सृजित रोजगार पुनः प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाएंगे और यह चक्र बहुत तेजी से चलने लगेगा।  इस चक्र के एक बार पूरे होने का समय हम एक माह मानते हैं, क्योंकि रोजगार प्राप्त व्यक्ति के हाथ में तनख्वाह आने में एक माह का समय लगता है, तथा व्यवसाय से होने वाले फायदे का समय भी एक माह ही मानते हैं।

ऐसे में प्राप्त हुई नई आय एवं उससे बढ़ने वाली मांग एवं उस मांग को पूरा करने के कारण बढ़ा हुआ उत्पादन एवं उस उत्पादन को बढ़ाने के लिए पुनः और श्रम की मांग, जिससे परिवार में एक अन्य अतिरिक्त व्यक्ति को रोजगार मिलने से हुई पुनः आय में वृद्धि यह पूरा चक्र एक माह में कम्पलीट हो जाएगा। यह चक्र जब एक बार पूर्ण होने के बाद दोबारा चलता है, तो विकास की गति पहले से दोगुनी होती है, दोबारा पूर्ण होने के बाद जब यह तीसरी बार चलता है, तो गति पुनः दोगुनी होती है। अर्थात यह विकास गुणोत्तर श्रेणी में आगे बढ़ता है (अर्थात 2 – 4 – 8 – 16 – 32 – 64 – 128 – 256 – 512 – 1024 – 2048 इत्यादि )

अर्थात एक वर्ष में इस मॉडल के प्रयोग से एक गाँव का विकास दो हजार गुना से भी ज्यादा बढ़ जाएगा इस विकास के अन्दर केवल आर्थिक विकास ही नहीं शामिल है इसके अन्दर आर्थिक विकास के साथ – साथ मानसिक, शारीरिक, नैतिक, शैक्षिक एवं भौतिक विकास भी शामिल है । अब यहां एक बात और सामने आती है, चूंकि प्रकृति अस्थिर है, व्यक्ति का स्वभाव अस्थिर है, इन दोनों कारणों  से विकास के इस मार्ग में कुछ प्रकृति जन्य या कुछ व्यक्ति जन्य आपदायें, विसंगतियां पैदा होती हैं और विकास की इस गति को कम करती हैं, परन्तु इन विसंगतियों के कारण विकास में होने वाली गिरावट समानान्तर श्रेणी में होती है।  अर्थात एक वर्ष के दृष्टिकोण से यह निम्न प्रकार से होगी-

1 -2 -3 -4 -5 -6 -7 -8 -9-10 -11 -12  इत्यादि इस मॉडल के अनुसार विकास होने पर यदि हम वर्ष के अन्त में गाँव का वास्तविक विकास जानना चाहें तो वह इस प्रकार होगा-:

वास्तविक विकास = गाँव का कुल विकास —विसंगतियों के कारण विकास में होने वाली गिरावट (एक वर्ष पूर्ण होने पर) वास्तविक विकास =2048 -12 =2036 अंक

अब जरा सोचिए गाँव में वृद्धि का यह विकास एक अंक से प्रारम्भ होकर एक वर्ष के अन्दर दो हजार अंक से भी ज्यादा के स्तर पर पहुंच जायेगा तो उस गाँव को सबसे आधुनिक और समृध्दिशाली गाँव बनने में कितना समय लगेगा ? आइए इसका जवाब जानते   हैं | इसका जवाब है केवल पांच वर्ष। जी हां,  केवल पांच वर्ष बाद इस गाँव को आप स्वयं नहीं पहचान पाएंगे ! मतलब जहां पांच वर्ष पहले लोगों को आपने भूख से मरते देखा था पांच वर्ष बाद वही गाँव आपको विश्व का सबसे आधुनिक एवं सारे विकास से परिपूर्ण, नैतिक एवं आदर्श गाँव लगेगा और वो हमारी भारत माँ की नाक का कील होगा जो कि बेहद दूर से चमकता हुआ दिखाई देगा। अब यहां आपको एक छोटा सा उदाहरण जापान का देते हैं।  जापान अपनी आजादी के बाद बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा था, चारों तरफ गरीबी और भुखमरी का बोलबाला था।

इसके बाद जापान के सभी वर्ग के डाक्टर्स ने, इंजीनियर्स ने, शासकीय कर्मचारियों ने, राजनेताओं ने, व्यवसाईयों ने, शिक्षकों ने, छात्रों ने, वकीलों ने, किसानों ने एवं अन्य सभी वर्ग के लोगों ने मिलकर तय किया कि कुछ दिन अपना सब कुछ भूल के अपने देश के लिए अपना अधिकतम देते हैं और अपने देश को बनाते हैं। बस इसके बाद शुरू हो गया देश को बनाने का सिलसिला बहुत ज़ोर शोर से और 30 वर्ष तक जापान के सभी वर्गों ने मिलकर अपने देश को बनाया जिसका परिणाम यह हुआ कि दीन – हीन  गरीब दशा को प्राप्त जापान, एक विकसित देश बन गया केवल 30  वर्षों में।

अब जरा  सोचिए ,

शून्य से , विकसित देश बनने का सफर जापान ने केवल 30 वर्ष में पूरा किया। इसकी तुलना में हम केवल 5 वर्ष में अपने देश के लगभग छः हजार गाँव को, उपरोक्त मॉडल गाँव की तरह पूरे विश्व का सबसे समृद्धशाली गाँव बना देंगे और इन्हीं गाँव से बनी हुई हमारी भारत माँ की छठा देखते ही बनेगी। 

पूरा विश्व आर्थिक, सामाजिक स्तर पर हमारे सामने नतमस्तक होगा और हम अपने देश के किसी गाँव में बैठकर, किसी दूसरे देश की मांग और पूर्ति समायोजित कर रहे होंगे। आइये,  यहां “स्वदेश व्यापार मंडल” बड़े मन से आपको आमंत्रित करता है, अपना साथ केवल पांच वर्ष तक, अपने देश को दीजिये,  जिससे हम मिल के अपनी भारत माँ को सजा सकें और इतना विकास ले आयें कि पूरे विश्व में हमारी छवि पुनः सोने की चिड़िया जैसी हो जाये।

हमारी माँ, हमारी भारत माँ  हमारा बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही है, इसलिए कृपया आइये हम अपनी भारत माँ के वो सपूत बने जिनका कार्य भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बाद शुरू होता है।

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आप सारी जिन्दगी इस गांव में देवता की तरह पूजे जायेंगे (“मिशन डिफीट द हंगर”)